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10 फरवरी : बलिदान दिवस महाराजा बख्तावर सिंह जी...जिनकी तलवार की हनक से डरकर भाग खड़े हुए थे अंग्रेज

आज राजा बख्तावर सिंह जी को बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

Sumant Kashyap
  • Feb 10 2024 8:49AM

हमारे देश में ऐसे अनेकों महान महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया है. हमारे देश में कई ऐसे लोग थे जिन्होंने इस देश में रह कर भी भारत के इतिहास से इन वीरों को मिटाने की कई कोशिशें की. इन लोगों ने उन सभी क्रांतिकारियों और महापुरुषों के नाम को छिपाने और सदा के लिए मिटाने की कोशिश की.

उन लाखों महान क्रांतिकारियों में से एक थे महाराजा बख्तावर सिंह जी. वहीं, आज राजा बख्तावर सिंह जी के बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

मध्य प्रदेश के धार जिले में बख्तावर सिंह जी का जन्म 14 दिसंबर 1824 में हुआ था. बख्तावर सिंह जी के पिता का नाम अजीत सिंह राठोड़ जी और माता का नाम महारानी इंद्रकुंवर था. खास बात यह है कि बख्तावर सिंह जी जब मात्र सात साल के थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद मात्र सात साल की उम्र में ही इन्हें रियासत की बागडोर संभालनी पड़ी.

अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ 1887 में विद्रोह की शुरुआत हुई थी और इस आंदोलन में देश के कई राजा-राजकुमारों ने भी अपना योगदान दिया था. जो न अंग्रेजों के आगे झुके और न ही स्वाधीनता स्वीकार की बल्कि अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए 1857 के विद्रोह में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.

एक ऐसा ही नाम था महाराणा बख्तावर सिंह जी का, जिन्हें मालवा का शेर कहा जाता था, जिन्होंने मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया था, जिनसे अंग्रेज इतना खोफ खाते थे कि उन्होंने अपने कई नियम तक बदल दिए थे. मालवा में आज भी महाराणा बख्तावर सिंह जी लोगों के बीच पूजे जाते हैं. 

बता दें कि वो महाराणा बख्तावर सिंह जी ही थे, जिन्होंने मालवा में क्रांति की मशाल जलाई थी. कई आक्रांता अंग्रेज अधिकारियों को उन्होंने मौत के घाट उतार दिया था. मालवा क्षेत्र को आज उज्जैन और इंदौर के अलावा उसके आसपास के जिलों वाला इलाका समझ लीजिए. महाराणा बख्तावर सिंह जी ने मालवा के साथ-साथ गुजरात से भी अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए तैयारी कर ली थी.

हमें आज वीर विनायक दामोदर सावरकर जी जैसे महापुरुष का धन्यवाद करना चाहिए, वरना 1857 के युद्ध को तो अंग्रेजों ने ‘सिपाही विद्रोह’ बता दिया था और वामपंथी इतिहासकारों ने इसे इसी तरह आगे बढ़ाया. रियासतों के राजाओं के पास भी क्रांतिकारियों के दूत आते थे और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से सम्बंधित तैयारियों की खबर देते थे. सरदारपुर तहसील में स्थित भोपावर में उस समय अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी. महाराणा बख्तावर सिंह जी की सेना ने ‘हर-हर महादेव’ नारे के साथ इस छावनी पर हमला बोल दिया.

महाराणा बख्तावर सिंह जी की वजह से लोगों के मन से अंग्रेजों का डर खत्म हो गया था. ऐसे में अंग्रेजी शासक परेशान होने लगे. उन्हें लगा अगर बख्तावर सिंह जी इसी तरह आगे बढ़ते रहे तो उनके हाथ से मालवा और निमाड़ निकल जाएगा. ऐसे में अंग्रेजों ने बख्तावर सिंह जी पर आक्रमण करने की योजना बनाई. 31 अक्टूबर 1857 को अंग्रेजों ने धार के किले पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया क्योंकि बख्तावर सिंह जी अमझेरा में थे. अंग्रेजी शासकों ने सेना और आगे बढ़ने का आदेश दिया था, लेकिन सैनिकों के मन में बख्तावर सिंह जी का डर इतना था कि अंग्रेजी सेना भोपावर से आगे नहीं बढ़ी और भाग निकली.

जब अंग्रेज महाराणा बख्तावर सिंह जी से सीधी लड़ाई नहीं जीत पाए तो उन्होंने षंडयंत्र का सहारा लिया, लेफ्टिनेंट हचिन्सन ने पूरी बटालियन अमझेरा भेजने की योजना बनाई और इसी बीच कर्नल डूरंड ने अमझेरा रियासत के कुछ प्रभावशाली लोगों को जागीर का लालच देकर कूटनीति से अपनी तरफ मिला लिया और महाराणा बख्तावर सिंह जी के पास संधिवार्ता के लिए भेज दिया. महाराणा बख्तावर सिंह जी इस कूटनीतिक चाल में फंस गए और अंग्रेजों से बातचीत के लिए तैयार हो गए.

हालांकि उनके कई समर्थकों ने उन्हें धार जाने से रोका. लेकिन वे नहीं माने और अंग्रेजों से बातचीत करने के लिए धार पहुंच गए. धार जाते समय 11 नवम्बर 1857 अंग्रेजों की अश्वारोही टुकड़ी ने इन्हें रोक लिया. अंगरक्षकों के विरोध के बाद भी अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया. बाद में राघोगढ़ वर्तमान देवास के ठाकुर दौलत सिंह जी ने अंग्रेजों की महू छावनी पर हमला किया और महाराणा बख्तावर सिंह जी को छुड़ाने का प्रयत्न किया परन्तु वो सफल नहीं हो सके. महू छावनी पर हुए हमले से अंग्रेज घबरा गए और उन्होंने महाराणा जी को इंदौर जेल भेज दिया और उन्हें तरह तरह की यातनाये दी. 

बता दें कि वकील चिमनलाल राम, सेवक मंशाराम तथा नमाजवाचक फकीर को काल कोठरी में बंद कर दिया गया, जहां घोर शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं सहते हुए उन्होंने दम तोड़ा. वहीं, अन्ततः 10 फरवरी, 1858 को इन्दौर के एम.टी.एच कम्पाउण्ड में देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले राजा बख्तावर सिंह जी को भी फांसी पर चढ़ा दिया गया. आज राजा बख्तावर सिंह जी को बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

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