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6 मई : आज से ही शुरू हुआ था कारगिल युद्ध...उस मुल्क से जिसे भारत को ही तोड़ कर बना दिया गया था सत्ता के लालच और कट्टरपंथ के आगे समर्पण के बाद

आज उस युद्ध की रणभेरी वाले दिन भारत की फ़ौज ने उन अमर योद्धाओ को याद कर के उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन न्यूज लेता है

Sumant Kashyap
  • May 6 2024 8:03AM

आज ही वो दिन है जिसके बाद जुलाई तक राष्ट्र ने खोये थे अपने कई जांबाज़ रणबांकुरे .. ये वो दिन है जब भारत की फ़ौज ने अपने इलाके को वापस लेने के लिए कर दिया था एलान ए जंग . इस तरफ से भारत के सेनापति थे जांबाज़ वी पी मालिक जी और उधर से पाकिस्तान की गद्दार और नापाक फ़ौज को संभाल रहे थे अपने ही राष्ट्र को धोखा देने वाले पीठ में खंज़र के लिए विख्यात परवेज़ मुशर्रफ .. ये युद्ध उस नापाक मुल्क से हुआ था जिसको बनाया था वर्तमान भारत में कई लोगों का आदर्श बन चुके गद्दारी के पर्याय कहे जा सकने वाले कट्टर मज़हबी और देशभक्ति से कोसों दूर मोहम्मद अली जिन्ना ने .

कारगिल की सफेद बर्फ को अपने लहू से लाल कर देने वाले हिंदोस्तानी फौज के जांनिसारों ने युद्ध इतिहास के शिलापट पर शौर्य, बलिदान और समपर्ण के अमर शिलालेखों का आचमन और स्मरण दिवस है कारगिल विजय दिवस। ज्ञात हो कि कारगिल युद्ध में मां भारती के ललाट पर विजय का रक्त चंदन लगाने वाले लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का, जो हंसते-हंसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

प्रथम अमरता मिली थी कैप्टन सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों को जिनके नाम थे नरेश सिंह, भीखा राम, बनवारी लाल, मूला राम और अर्जुन राम। सौरभ कालिया….देश की सेवा में समर्पित सौरभ उन दिनों महज 23 साल के थे। उन्हें फौज में बस एक महीने ही हुआ था। यहां तक कि उन्हें पहली सैलरी भी नहीं मिली थी, लेकिन इसी दौरान वो बलिदान हो गए। 

5 मई 1999 को जब वे रात में लद्दाख के बटालिक सेक्टर के बजरंग पोस्ट पर गस्त कर रहे थे। तभी उन्हें पाकिस्तान की तरफ से कुछ आतंकवादियों के घुसपैठ करने की सूचना मिली।इसके बाद सौरभ ने उन्हें पकड़ने का प्लान बनाया। सौरभ अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, बीका राम, मूला राम और नरेश सिंह के साथ मिलकर पाकिस्तानी घुसपैठियों की तलाश में निकल पड़े। घुसपैठिए पहले ही घात लगाए बैठे थे। दोनों तरफ से खूब गोलाबारी हुई। कई राउंड फायरिंग हुई। कैप्टन सौरभ और उनके साथियों ने घुसपैठियों पर धावा बोल दिया। एक घंटे से ज्यादा देर तक दोनों तरफ से फायरिंग और गोलाबारी हुई। तभी कैप्टन सौरभ और उनके साथियों के पास गोला बारूद खत्म हो गए। जिसके बाद घुसपैठियों ने कैप्टन सौरभ और इनके पांच साथियों को पकड़ लिया। कैप्टन सौरभ और उनके पांच साथियों को पाकिस्तानी घुसपैठियों ने 22 दिनों तक बंदी की तरह रखा था।

मानवता की बातें वहां लागू नहीं हो रही थी उन्हें खाने को नहीं दिया जाता था। उनका मुंह खुलवाने के लिए उन्हें बुरी तरह से टॉर्चर किया जाता था। टार्चर करने के बाद भी कैप्टन सौरभ और उनके साथियों ने अपना मुंह नहीं खोला था तो घुसपैठियों ने सभी को तड़पा-तड़पाकर मौत के घाट उतार दिया। धर्मनिरपेक्षता के सभी नियमो को आग लगा कर उनकी डेड बॉडी को बुरी तरह से क्षत-विक्षत कर दिया था। उनकी पहचान मिटाने के लिए चेहरे और बॉडी पर धारदार हथियार से कई बार प्रहार किया गया था। उसके बाद घुसपैठिए शहीदों की डेडबॉडी को छोड़कर भाग गये थे। सेना को जब कैप्टन सौरभ कालिया और उनके पांच अन्य साथियों की डेडबॉडी मिली। तब उनकी पूरी बॉडी पर इतने ज्यादा चोट के निशाने थे कि डेडबॉडी की पहचान करना मुश्किल हो रहा था। देश की सेना को कई घंटे लग गए तब जाकर सभी बलिदानियों की बॉडी की पहचान हो पाई। उसके बाद जाकर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हो पाया था।

भारतीय सेना की कार्रवाई में मारे गए घुसपैठियों की तलाशी ली गई, तो उनके पास से पाकिस्तानी पहचान पत्र मिले थे। करगिल जंग में मारे गए ज्यादातर जवान नॉर्दर्न लाइट इंफैंट्री के थे। पहले यह एक अर्धसैनिक बल था, लेकिन 1999 की जंग के बाद इसे पाकिस्तान की नियमित रेजीमेंट में बदल दिया गया। करगिल युद्ध में पाकिस्तान के 357 सैनिक मारे गए, लेकिन अपुष्ट आंकड़ों के मुताबिक भारतीय सेना की कार्रवाई में तीन हजार के आस-पास सैनिकों की जान चली गई। भारतीय सेना ने लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों और मुजाहिदीनों के रूप में पहाडयि़ों पर कब्जा जमाए आतंकियों को परास्त किया। आईएसआई के पूर्व अधिकारी शाहिद अजीज ने भी माना था कि इसमें नियमित पाकिस्तानी सैनिक शामिल थे। पाकिस्तान के उर्दू डेली में छपे एक बयान में पीएम नवाज शरीफ ने इस बात को माना था कि करगिल का युद्ध पाकिस्तानी सेना के लिए एक आपदा साबित हुआ था।

नवाज ने माना था कि पाकिस्तान ने इस युद्ध में 2700 से ज्यादा सैनिक खो दिए। रेड क्रास के मुताबिक युद्ध के दौरान पाकिस्तानी कब्जे वाले इलाकों में करीब 30,000 लोगों को अपने घर छोडऩे पड़े और भारतीय इलाकों में करीब 20,000 लोगों पर असर पड़ा। कारगिल की लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी एयर फोर्स के चीफ को पहले इस ऑपरेशन की खबर नहीं दी गई थी। जब इस बारे में पाकिस्तानी एयर फोर्स के चीफ को बताया गया, तो उन्होंने इस मिशन में आर्मी का साथ देने से मना कर दिया था।

 कारगिल के दौरान सेना के वीरों ने दुश्मन के हर वार का पलट कर जवाब दिया. वैसे तो इस युद्ध में शामिल हर एक जवान ने अपना सबकुछ लगा दिया, लेकिन कैप्टन अनुज नैय्यर, कैप्टन नीलकंठन जयचंद्रन नायर, ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी, गुरबचन सिंह सलारिया, ग्रिनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय, राइफ़लमैन जसवंत सिंह, कैप्टन विक्रम बत्रा, अर्जुन कुमार वैद्य, नंद सिंह, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला जैसे कुछ नाम हैं, जिनकी वीरती के किस्से आज भी लोगों की जुब़ा पर रहते हैं. आज उस युद्ध की रणभेरी वाले दिन भारत की फ़ौज ने उन अमर योद्धाओ को याद कर के उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन न्यूज लेता है और जिन्ना भक्तो के लिए सवाल छोड़ कर जाता है की इन बलिदानियों के ऊपर हमले का दोषी जिन्ना नहीं तो और कौन ?

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