क्या जो तथाकथित स्टार रात में शराब के नशे में धुत हो जाते हैं वो बताएंगे हमें हमारा असली इतिहास. क्या सूरज की महिमा का वर्णन करना जीरो वाट के बल्ब में साहस होना चाहिए ? क्या नकली लड़ाई और परदे के झूठे एक्शन उन वीरों के असली युद्ध कौशल की बराबरी कर सकते हैं ? क्या कुछ तथाकथित स्टार समर्थक दर्शको द्वारा देखी गयी नकली परदे की वीरता उन वीरों के वास्तविक युद्ध के समकक्ष हो सकते हैं जिनके गवाह स्वयं देवता हुआ करते थे
यदि नहीं हो ये भी जानना होगा कि हिंदवा सूर्य मराठा सिरमौर माने जाने वाले बाजीराव के बारे में जो अपनी वीरता, रणकौशल, बलिदान, त्याग, राष्ट्रप्रेम से मातृभूमि पर कुदृष्टि उठाने वाले का सर धड से अलग करने की शिक्षा देता था ना कि अपने देश के जवानो के सर काट लेने वाले देश के साथ नाचने गाने की पैरवी करना और हिंदुत्व के मूल्यों का आये दिन कभी अपने बयानों से तो कभी अपनी फिल्मों से उपहास उड़ाना. आज हम बता रहे हैं महान योद्धा बाजीराव के बारे में, जिनकी आज पुण्यतिथि है तथा जिन्होंने हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के लिए ना सिर्फ मुगलों को भारत भूमि में अपनी तलवार के दम पर दफना दिया अपितु पुर्तगालियों को भी भारत में आने पर पछताने पर मजबूर कर दिया था.
महावीर योद्धा बाजीराव जिनके शौर्य का वास्तविक आंकलन शायद मेरे या किसी के भी वश की बात नहीं और वो महायोद्धा जिसके इतिहास को चाटुकारिता के लिए जाने जाने वाले कुछ उन तथाकथित इतिहासकारों ने सम्मान नही दिया. वो इतिहासकार जिन्होंने अपनी कलम और बुद्धि केवल एक घराने में बेच रखी थी .बाजीराव प्रथम मराठा साम्राज्य का महान् सेनानायक थे. वह बालाजी विश्वनाथ और राधाबाई के ज्येष्ठ पुत्र थे. राजा शाहू ने बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु हो जाने के बाद उसे अपना दूसरा पेशवा (1720-1740 ई.) नियुक्त किया था.
बाजीराव प्रथम को 'बाजीराव बल्लाल' तथा 'थोरले बाजीराव' के नाम से भी जाना जाता है. बाजीराव प्रथम ने हिन्दू जाति की कीर्ति को विस्तृत करने के लिए 'हिन्दू पद पादशाही' के आदर्श को फैलाने का प्रयत्न किया. इतना ही नहीं बाजीराव प्रथम एक महान् राजनायक और योग्य सेनापति थे. उन्होंने मुग़ल साम्राज्य की कमज़ोर हो रही स्थिति का फ़ायदा उठाने के लिए राजा शाहू को उत्साहित करते हुए कहा था कि- आओ हम इस पुराने वृक्ष के खोखले तने पर प्रहार करें, शाखायें तो स्वयं ही गिर जायेंगी. हमारे प्रयत्नों से हिंदुत्व की पताका कृष्णा नदी से अटक तक फहराने लगेगी.
इसके उत्तर में शाहू ने कहा कि- निश्चित रूप से ही आप इसे हिमालय के पार गाड़ देगें. निःसन्देह आप योग्य पिता के योग्य पुत्र है. राजा शाहू ने राज-काज से अपने को क़रीब-क़रीब अलग कर लिया था और मराठा साम्राज्य के प्रशासन का पूरा काम पेशवा बाजीराव प्रथम देखते थे. इतना ही नहीं बाजीराव प्रथम को सभी नौ पेशवाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. बाजीराव प्रथम ने अपनी दूरदृष्टि से देख लिया था कि मुग़ल साम्राज्य छिन्न-भिन्न होने जा रहा है. इसीलिए उसने महाराष्ट्र क्षेत्र से बाहर के हिन्दू राजाओं की सहायता से मुग़ल साम्राज्य के स्थान पर 'हिन्दू पद पादशाही' स्थापित करने की योजना बनाई थी. इसी उद्देश्य से उसने मराठा सेनाओं को उत्तर भारत भेजा, जिससे पतनोन्मुख मुग़ल साम्राज्य की जड़ पर अन्तिम प्रहार किया जा सके. उसने 1723 ई. में मालवा पर आक्रमण किया और 1724 ई. में स्थानीय हिन्दुओं की सहायता से गुजरात जीत लिया.
बाजीराव प्रथम एक योग्य सैनिक ही नहीं, बल्कि विवेकी राजनीतिज्ञ भी थे. उसने अनुभव किया कि मुग़ल साम्राज्य का अन्त निकट है तथा हिन्दू नायकों की सहानुभूति प्राप्त कर इस परिस्थिति का मराठों की शक्ति बढ़ाने में अच्छी तरह से उपयोग किया जा सकता है. साहसी एवं कल्पनाशील होने के कारण उसने निश्चित रूप से मराठा साम्राज्यवाद की नीति बनाई, जिसे प्रथम पेशवा ने आरम्भ किया था. उसने शाही शक्ति के केन्द्र पर आघात करने के उद्देश्य से नर्मदा के पार फैलाव की नीति का श्रीगणेश किया.
अत: उसने अपने स्वामी शाहू से प्रस्ताव किया- हमें मुरझाते हुए वृक्ष के धड़ पर चोट करनी चाहिए. शाखाएँ अपने आप ही गिर जायेंगी. इस प्रकार मराठों का झण्डा कृष्णा से सिन्धु तक फहराना चाहिए. बाजीराव के बहुत से साथियों ने उसकी इस नीति का समर्थन नहीं किया. उन्होंने उसे समझाया कि उत्तर में विजय आरम्भ करने के पहले दक्षिण में मराठा शक्ति को दृढ़ करना उचित है. परन्तु उसने वाक् शक्ति एवं उत्साह से अपने स्वामी को उत्तरी विस्तार की अपनी योग्यता की स्वीकृति के लिए राज़ी कर लिया.
हिन्दू नायकों को एक साथ एक स्थान पर लाने के लिए तथा उनका समर्थन प्राप्त करने के लिए बाजीराव ने 'हिन्दू पद पादशाही' आदर्श का प्रचार किया. जब उन्होंने दिसम्बर, 1723 ई. में मालवा पर आक्रमण किया, तब स्थानीय हिन्दू ज़मींदारों ने उसकी बड़ी सहायता की, यद्यपि इसके लिए उन्हें अपार धन-जन का बलिदान करना पड़ा. गुजरात में गृह-युद्ध से लाभ उठाकर मराठों ने उस समृद्ध प्रान्त में अपना अधिकार स्थापित कर लिया. बाजीराव प्रथम ने सर्वप्रथम दक्कन के निज़ाम निज़ामुलमुल्क से लोहा लिया, जो मराठों के बीच मतभेद के द्वारा फूट पैदा कर रहा था. 7 मार्च, 1728 को पालखेड़ा के संघर्ष में निजाम को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा और 'मुगी शिवगांव' संधि के लिए बाध्य होना पड़ा.
बाजीराव प्रथम ने मराठा शक्ति के प्रदर्शन हेतु 29 मार्च, 1737 को दिल्ली पर धावा बोल दिया था. मात्र तीन दिन के दिल्ली प्रवास के दौरान उसके भय से मुग़ल सम्राट मुहम्मदशाह दिल्ली को छोड़ने के लिए तैयार हो गया था. इस प्रकार उत्तर भारत में मराठा शक्ति की सर्वोच्चता सिद्ध करने के प्रयास में बाजीराव प्रथम सफल रहा था। उसने पुर्तग़ालियों से बसई और सालसिट प्रदेशों को छीनने में सफलता प्राप्त की थी. शिवाजी के बाद बाजीराव प्रथम ही दूसरा ऐसा मराठा सेनापति था, जिसने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाया. वह 'लड़ाकू पेशवा' के नाम से भी जाना जाता है. आज उस वीर बलिदानी के जन्म दिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारम्बार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सच्चे स्वरूपों में सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है.
हिन्दुस्तान के इतिहास के बाजीराव एसे योद्धा थे जिन्होंने 41 लड़ाइयां लड़ीं और एक भी नहीं हारीं. वर्ल्ड वॉर सेकंड में ब्रिटिश आर्मी के कमांडर रहे मशहूर सेनापति जनरल मांटगोमरी ने भी अपनी किताब 'हिस्ट्री ऑफ वॉरफेयर' में बाजीराव की बिजली की गति से तेज आक्रमण शैली की जमकर तारीफ की है और लिखा है कि बाजीराव कभी हारा नहीं. आज वो किताब ब्रिटेन में डिफेंस स्टडीज के कोर्स में पढ़ाई जाती है. बाद में यही आक्रमण शैली सेकंड वर्ल्ड वॉर में अपनाई गई जिसे 'ब्लिट्जक्रिग' बोला गया.
अमेरिकी सेना ने उनकी पालखेड़ की लड़ाई का एक मॉडल ही बनाकर रखा है जिस पर सैनिकों को युद्ध तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाता है. बाजीराव का युद्ध रिकॉर्ड छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप से भी अच्छा माना जाता है.. नर्मदा पार सेना ले जाने वाला और 400 वर्ष की यवनी सत्ता को दिल्ली में जाकर ललकारने वाला बाजीराव पहला मराठा था. आज बाजीराव पेशवा की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें शत-शत नमन वंदन करता है तथा उनकी यशगाथा को युग-युगान्तरों तक दोहराने का संकल्प लेता है.