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प्रयागराज हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस कमलेश्वर नाथ जी की पुस्तक " इयरिंग फॉर राम मंदिर एंड फुलफिलमेंट" पुस्तक का लोकार्पण हुआ

डॉ अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में प्रयागराज हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस कमलेश्वर नाथ जी की पुस्तक "रनिंग फॉर राम मंदिर एंड फुलफिलमेंट" नामक पुस्तक का लोकार्पण हुआ.

Deepika Gupta
  • May 3 2024 2:27PM

डॉ अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में प्रयागराज हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस कमलेश्वर नाथ जी की पुस्तक "रनिंग फॉर राम मंदिर एंड फुलफिलमेंट" नामक पुस्तक का लोकार्पण हुआ, जिसमें  मुख्य अतिथि के रूप में नेशनल ह्यूमन राइट्स के चेयरमैन जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा जी ,मुख्य वक्ता के रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहकार्यवाह आदरणीय डॉ कृष्ण गोपाल जी,  सम्मानित अतिथि के रूप में विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार जी और राम मंदिर तीर्थ छेत्र स्थल के महासचिव चंपत राय जी रहे। गरूड़ प्रकाशन के मुख्य संपादक संक्रांतु सोनू जी भी मंच पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन गुजरात विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर नीरजा गुप्ता जी ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत एकल गीत प्रस्तुति एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।

कार्यक्रम में पहला वक्तव्य पुस्तक के लेखक कमलेश्वर नाथ जी ने दिया जिन्होंने पुस्तक के उपर प्रकाश डालते हुए  सर्वप्रथम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक पूज्यनीय मोहन भागवत जी द्वारा पुस्तक के लिए दिए गए प्रेरणा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किया। इन्होंने अपने उद्बोधन में मंदिर से जुड़े 500 वर्ष पुराने इतिहास का जिक्र किया। उन्होंने राममंदिर के विरोध में खड़े पक्षकारों का जिक्र करते हुए कहा कि जब 2500 वर्ष पूर्व जीसस और 1500 वर्ष पूर्व मोहम्मद के जन्म पर इस देश में विवाद नहीं हुआ तो फिर अपने ही घर में हमारे आराध्य प्रभू श्रीराम के जन्म को लेके इतनी शंका क्यों उत्पन्न हुई। उन्होंने वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास के रामचरित मानस की वैज्ञानिकों द्वारा की गई पुष्टि का उल्लेख किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में दशकों तक रामजन्म भूमि के लिए चलने वाली वाली जटिल न्यायिक प्रक्रिया जिसमें गवाहों , भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा किए गए उत्खनन एवं कोर्ट में पेश होने वाले प्रमाणिक दस्तावेजों एवं जगतगुरु रामभद्राचार्य जी के श्लोक के माध्यम से मौखिक साक्ष्यों जिन्हें न्यायालय में प्रस्तुत किया गया उसका विधिवत उल्लेख किया। 

कार्यक्रम के दूसरे वक्ता रामजन्म भूमि तीर्थ छेत्र के महासचिव चंपतराय जी रहे , वक्तव्य की शुरुआत उन्होंने सन् 1962 के मुकदमे का जिक्र किया जिसे मुस्लिम पक्षों ने दायर किया था एवं 1983 में मंदिर निर्माण का आंदोलन विश्व हिंदू परिषद के जिम्मे आता है। उन्होंने उस दौर का जिक्र किया और बताया कि एक समय ऐसा भी आया जब इस बात की आवश्यकता महसूस हुई कि सर्वप्रथम इस विषय पर भारतीय जनमानस को शिक्षित करने की आवश्यकता है तत्पश्चात ही इस आंदोलन को सुदृढ़ बनाया जा सकता है। उन्होंने सन् 1986 का जिक्र किया जिसमें सर्वप्रथम मंदिर के ताले को खोलने की अनुमति मिलती है। 

उन्होंने उस समय मामले के प्रमुख पक्षकार देवकीनंदन जी का जिक्र भी किया जिन्होंने समय समय पर दृढ़ता से न्यायालय में अपना पक्ष रखा , देवकीनंदन जी ने अशोक सिंघल जी से कमलेश्वर नाथ गुप्ता जी का परिचय करवाया जिसके बाद कमलेश्वर नाथ जी ने अपना जीवन प्रभु श्रीराम को समर्पित कर न्यायालय में मंदिर निर्माण के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। उन्होंने अनुवाद कार्य में लगी शोधार्थि मनीषा का भी जिक्र किया जिनके द्वारा किए गए अनुवाद और शोध प्रक्रिया में लगे वकीलों के लिए साक्ष्यों और समझ विकसित करने के कार्यों में काम आ रहे थे। उन्होंने मंदिर निर्माण के समय कोरोना महामारी के दौरान नींव निर्माण के कार्यों में आ रही समस्या एवं उस कार्य को सुचारू एवं सफल बनाने वाले टी.जी.सीतारमन जी को साधुवाद देते हुए अपने उद्बोधन को समाप्त किया।

तीसरा उद्बोधन विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार जी ने दिया जिन्होंने 10 वर्षों तक न्यायालय में लगे वकीलों की साधना का जिक्र किया। एवं चंपतराय जी को धन्यवाद दिया जिन्होंने बिना वकालत की शिक्षा लिए अपने आप को आंदोलन के लिए समर्पित किया एवं न्यायिक प्रक्रिया में ज़रूरी साक्ष्यों को इकट्ठा करने में अपना योगदान दिया। उन्होंने उस बात का भी उल्लेख किया कि यह पुस्तक एक दस्तावेज के रूप में हमारे बीच उपलब्ध है एवं उन्होंने राम के जीवन से संबंधित त्याग , प्रेम , समर्पण एवं धर्म पर प्रकाश डालते हुए अपने उद्बोधन को समाप्त किया।

तत्पश्चात इस केस में स्थापित तीन सदस्यीय बेंच में से एक जस्टिस भवरसिंह जी का वक्तव्य रहा जिन्होंने कमलेश्वर नाथ जी को अपना आदर्श बताते हुए केस से जुड़े रोचक किस्से सुनाए जिसमें उन्होंने अकबर का जिक्र किया जिसने सोलहवीं शताब्दी में राम चबूतरे को हिंदुओं को सौंपने की वकालत की परंतु उस दौर के मुसलमान अकबर को काफिर मानने लगे एवं बाद में अकबर ने अपने फैसला वापस ले लिया। उन्होंने उत्खनन को लेकर बोला कि एक पक्ष नहीं चाहता था कि खुदाई हो , क्योंकि उसे डर था अगर खुदाई में कुछ भी प्राप्त हुआ तो उनका दावा कमज़ोर हो सकता है। उन्होंने जी.पी.आर मशीन के इस्तेमाल का भी सुझाव दिया जिसके माध्यम से मैगनेटिक सर्वे किया जा सके एवं छह माह तक इस सर्वे के चलने के पश्चात जो साक्ष्य पाए गए उसमें वहां हिन्दू मंदिर के ढ़ांचे होने के स्पष्ट प्रमाण मिले। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भी जिक्र किया जिन्होंने उस समय के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के.के.नायर को मुख्यमंत्री के माध्यम से वहां से राम लला की मुर्ती हटाने के लिए आदेश दिया परंतु के.के.नायर जी ने शालीनतापूर्वक नौकरी की परवाह किए बगैर इसे अस्वीकार कर दिया। इसी के साथ इन्होंने अपने वक्तव्य को समाप्त किया।

अगला उद्बोधन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहकार्यवाह आदरणीय डॉ कृष्ण गोपाल जी ने किया , उन्होंने भारत विदेशी आक्रमणकारी द्वारा फरमान जारी कर बार बार मंदिरों को तोड़ें जाने का जिक्र किया एवं हिंदुओं के अन्दर स्थापित भाव जिसमें टूटे मंदिरों के पुनर्निर्माण के सतत प्रक्रिया का भी जिक्र किया। उन्होंने कारसेवा में लगे स्वयंसेवकों का भी उल्लेख किया। कृष्ण गोपाल जी का उद्बोधन दार्शनिक पक्षों पर प्रकाश डालने वाला था, जिसमें उन्होंने राम के द्वारा स्थापित आदर्शों का उल्लेख किया। उन्होंने मंथरा , रावण , निषाद राज , भरत , लक्ष्मण आदि के जीवन प्रसंगों से वर्तमान परिदृश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पश्चिमी दर्शन अधिकार बोध को महत्व देते हैं एवं भारतीय दर्शन कर्तव्य बोध को महत्व देते हैं एवं वर्तमान समय में हम कर्तव्य बोध से अधिकार बोध की तरफ बड़ रहे हैं जो हमारे समाज के लिए चिंता का विषय है। कुछ और प्रसंगों का जिक्र करते हुए उन्होंने अपने उद्बोधन को समाप्त किया।

अंतिम वक्तव्य नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन के चेयरमैन न्यायामूर्ति अरूण कुमार मिश्रा जी ने रखा जिन्होंने भारतीय संविधान एवं रामराज्य के उपर अपने वक्तव्य को केंद्रित रखा उन्होंने प्राचीन इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि रामराज्य के समय सभी सुखी थे , कोई दीन-हीन नहीं था , कोई दरिद्र नहीं था , सभी ज्ञान से परिपूर्ण थे , लोग छल - कपट , द्वेष, इर्ष्या से मुक्त थे। हमारे संविधान का मूल उद्देश्य ही हमें रामराज्य की ओर लेकर चलने वाला है । उन्होंने समतामूलक समाज, वसुधैव कुटुंब, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की परिकल्पना पर आधारित समाज का भी जिक्र किया। उन्होंने विनयशीलता, सत्यमेव जयते, अनुच्छेद 21 जैसे विषयों पर भी अपने विचार रखे एवं इनकी तुलनात्मक विश्लेषण रामराज्य से किया। उन्होंने राम , लक्ष्मण एवं महात्मा गांधी के दर्शन पर भी प्रकाश डाला जिसके पालन से समाज में जरूरी नैतिक मूल्यों एवं रामराज्य जैसी व्यवस्थाओं की पुनर्स्थापना की जा सके। इसी के साथ उन्होंने अपने उद्बोधन को समाप्त किया। कार्यक्रम का समापन डॉ नीरजा गुप्ता के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन एवं वंदेमातरम से किया गया।

 

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