पृथ्वीराज चौहान जी भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है. हिंदुत्व के योद्धा कहे जाने वाले चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे. महज 11 वर्ष की उम्र मे, उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था, परंतु अंत मे वे विश्वासघात के शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया. पृथ्वीराज को राय पिथोरा भी कहा जाता था. पृथ्वीराज चौहान जी बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे, उन्होने युध्द के अनेक गुण सीखे थे. उन्होने अपने बाल्यकाल से ही शब्दभेदी विद्या का अभ्यास किया था.
धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान जी का जन्म हिंदी कैलेंडर के अनुसार, आज यानी 16 मई को ही दिन 1149 मे हुआ. पृथ्वीराज जी अजमेर के महाराज सोमेश्र्वर और कपूरी देवी की संतान थे. पृथ्वीराज जी का जन्म उनके माता पिता के विवाह के 12 वर्षो के पश्चात हुआ. यह राज्य मे खलबली का कारण बन गया और राज्य मे उनकी मृत्यु को लेकर जन्म समय से ही षड्यंत्र रचे जाने लगे, परंतु वे बचते चले गए. परंतु मात्र 11 वर्ष की आयु मे पृथ्वीराज के सिर से पिता का साया उठ गया था, उसके बाद भी उन्होने अपने दायित्व अच्छी तरह से निभाए और लगातार अन्य राजाओ को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार करते गए. पृथ्वीराज जी के बचपन के मित्र चंदबरदाई उनके लिए किसी भाई से कम नहीं थे. चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे. चंदबरदाई बाद मे दिल्ली के शासक हुये और उन्होने पृथ्वीराज चौहान जी के सहयोग से पिथोरगढ़ का निर्माण किया, जो आज भी दिल्ली मे पुराने किले नाम से विद्यमान है.
पृथ्वीराज जी की बहादुरी के किस्से जब जयचंद की बेटी संयोगिता के पास पहुचे तो मन ही मन वो पृथ्वीराज जी से प्यार करने लग गयी और उससे गुप्त रूप से काव्य पत्राचार करने लगी. संयोगिता के पिता जयचंद को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी और उसके प्रेमी पृथ्वीराज जी को सबक सिखाने का निश्चय किया. जयचंद ने अपनी बेटी का स्वयंवर आयोजित किया जिसमे हिन्दू वधु को अपना वर खुद चुनने की अनुमति होती थी और वो जिस भी व्यक्ति के गले में माला डालती वो उसकी रानी बन जाती.
जयचंद ने देश के सभी बड़े और छोटे राजकुमारों को शाही स्वयंवर में साम्मिलित होने का न्योता भेजा लेकिन उसने जानबुझकर पृथ्वीराज को न्योता नही भेजा. यही नही बल्कि पृथ्वीराज को बेइज्जत करने के लिए द्वारपालों के स्थान पर पृथ्वीराज की मूर्ती लगाई. पृथ्वीराज को जयचंद की इस सोची समझी चाल का पता चल गया और उसने अपनी प्रेमिका सयोंगिता को पाने के लिए एक गुप्त योजना बनाई.
स्वयंवर के दिन सयोंगिता सभा में जमा हुए सभी राजकुमारों के पास से गुजरती गई. उसने सबको नजरंदाज करते हुए मुख्य द्वार तक पहुची और उसने द्वारपाल बने पृथ्वीराज जी की मूर्ति के गले में हार डाल दिया. सभा में एकत्रित सभी लोग उसके इस फैसले को देखकर दंग रह गये क्योंकि उसने सभी राजकुमारों को लज्जित करते हुए एक निर्जीव मूर्ति का सम्मान किया. लेकिन जयचंद को अभी ओर झटके लगने थे.
पृथ्वीराज उस मूर्ति के पीछे द्वारपाल के वेश में खड़े थे और उन्होंने धीरे से संयोगिता को उठाया और अपने घोड़े पर बिठाकर द्रुत गति से अपनी राजधानी दिल्ली की तरफ चले गये. जयचंद और उसकी सेना ने उनका पीछा किया और परिणामस्वरूप उन दोनों राज्यों के बीच 1189 और 1190 में भीषण युद्ध हुआ जिसमे दोनों सेनाओ को काफी नुकसान हुुुआ.
पृथ्वीराज की सेना बहुत ही विशालकाय थी, जिसमे 3 लाख सैनिक और 300 हाथी थे. कहा जाता है कि उनकी सेना बहुत ही अच्छी तरह से संगठित थी, इसी कारण इस सेना के बूते उन्होने कई युध्द जीते और अपने राज्य का विस्तार करते चले गए. मोहम्मद गोरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था, जिसमें 17 बार उसे पराजित होना पड़ा.
हर बार मोहम्मद गोरी अपने परिवार से लेकर मजहबी मान्यताओं तक की कसम व दुहाई देते हुए पृथ्वीराज चौहान के हाथों मृत्यु से बचता रहा. बार-बार दयालु सहृदय पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी को क्षमा करते रहे और उसे जीवन दान देते रहे. लेकिन हर बार मोहम्मद गोरी एक नई साजिश एक नए षड्यंत्र के साथ पृथ्वीराज चौहान पर हमला करता रहा और आखिरकार अंतिम युद्ध में वह अपने नापाक मंसूबों में सफल रहा. पृथ्वीराज चौहान से दर्जनों अवसर पानेेे वा मोहम्मद गोरी ने उन्हें एक अवसर भी नहीं दिया.
अंत में पृथ्वीराज चौहान जी के हाथों ही क्रूर मोहम्मद गोरी का अंत हुआ तथा पृथ्वीराज चौहान जी ने भी अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया. यद्द्पि युद्ध मे पृथ्वीराज के साथ की गई तत्कालीन कुछ हिंदू राजाओं की गद्दारी देश आज तक भुगत रहा है और आगे कब तक भुगतेगा यह निश्चित नहीं. हिंदुत्व की ज्वलंत मशाल चक्रवर्ती हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी ने सनातन की भगवा पताका को संपूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड में लहराने के लिए जो किया, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता.
अफ़सोस इसके बाद भी भारत के इतिहास में पृथ्वीराज चौहान जी को उचित स्थान नहीं दिया गया क्योंकि नकली इतिहासकार जानते थे कि अगर हिन्दुओं ने पृथ्वीराज चौहान जी को अपना आदर्श मानकर आगे बढ़ना शुरू किया तो हिंदुस्तान से वह भागने को मजबूर होंगे. लेकिन अब समय बदला है तथा हिंदुस्तान न सिर्फ पृथ्वीराज चौहान जी बल्कि उनके जैसे तमाम हिन्दू कुलभूष्णों के गौरवशाली कार्यों को याद कर, उनका अनुसरण कर आगे बढ़ रहा है. आज पृथ्वीराज चौहान जी की जन्मजयंती पर हम सब संकल्प लें कि उनकी तरह ही हम धर्म रक्षा के लिए हमेशा समर्पित रहेंगे, साथ ही ये सीख भी कि विधर्मियों को कभी माफ़ नहीं करेंगे.